सत्संग का फल – Satsang Ka Fal Best 3 Story In Hindi

इस पोस्ट में आज हम सत्संग का फल के बारे में कुछ कहानिया पढ़ेंगे। सत्संग हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरुरी है। सत्संग से ही मनुष्य इस जीवन को जीने की कला शीख सकता है। 

एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध।                                                                                                                                              तुलसी सत्संग  साध की हरे कोटि अपराध।।

सत्संग हमारे जीवन का एक ऐसा शुद्ध वाणी है। जिसे सुनने के बाद जीवन तृप्त हो जाता हैं। सत्संग की बहुत महिमा हैं। सत्संग को सुनने से हमारे किये हुए भूल को दिखता हैं और साथ ही साथ उसे सुधरने की भी सिख मिलती है सत्संग से मनुष्य  को जीवन जीने का तरीका पता चलता है।

सत्संग तो एक ऐसा मूल मंत्र हैं – जो फूल से फल , फल से बीज और बीज से वृक्ष उसी प्रकार सत्संग से हमारे मन का विवेक जगता हैं और जब विवेक जागने से भगवान से प्रेम होता है और प्रेम से करने से भगवान मिलते है।

सत्संग को सुनने से हमारे करोङो – करोङो जन्मो का पाप नष्ट हो जाता है। सत्संग से हमारा मन शुद्ध हो जाता है जीवन में सत्संग को कभी अलग नहीं करना चाहिए। और जिसे सत्संग सुनने को मिलता है उसका जीवन धन्य हो जाता है और भगवान की कृपा विशेष रहती हैं।

1.सत्संग का फल

एक गांव में एक मोहन नाम का लकङहारा रहता था। वह बहुत ही गरीब था। मोहन जंगल से प्रतिदिन लकड़ी लेकर बेचता था। लकड़ी बेचकर जो 10-20 रुपये मिलते थे उसी से उसका गुजरा होता था। 

एक दिन रोज की तरह जंगल में गया और बहुत सारे लकडिया इकठा किया और बेचने चल दिया। रास्ते में एक मंदिर था। एक दिन सत्संग चल रहा था। मोहन ने वहा लकड़ी रखा और सत्संग सुनने लगा सत्संग में उसे इतना मन लग गया था की वह भूल गया की लकड़ी बेचने भी जाना है।

शाम हो गयी सोचा आज परिवार भूखा रहेगा। तभी सत्संग से निकले लोगो को उस लकड़ी से सुंगंध आने लगी। सबने लकड़ी खरीदी देखते  – देखते उसने सारी लकड़ी बेच दी। उस दिन उसे 100 रुपये मिल गए वह बहुत खुश हो गया।

आज तक उसे 20 रुपये ही मिलते थे। फिर लोगो ने उसे बताया की यह चन्दन की लकड़ी है अब तक वह इसे सिर्फ जलाने के लिए के बेचता था। अब सेठ साहूकारों को बेचने लगा। कुछ ही दिनों में वह आमिर आदमी बन गया। इस प्रकार मोहन जब सत्संग में गया तो उसे  सत्संग का लाभ मिल गया।

सारांश – सत्संग का फल की कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की सत्संग करने से हमें लाभ मिलता ही है।

2.  भगवान की संगत

एक जंगल में संत रहा करते थे। वह बच्चो को शिक्षा देते थे। एक दिन वह जंगल में एक शिष्य के साथ चटाई बिछाकर भगवान का ध्यान कर रहे थे।  तभी एक शेर सामने से आ रहा था। शिष्य बहुत डर गया और एक पेड़ पर चढ़ गया।

संत बैठे रहे। शिष्य बोला गुरूजी आप भी पेड़ पर आए जाइये नहीं तो शेर आपको खा जायेगा। गुरूजी ध्यान में लीन थे। शेर आया और चुपचाप चला गया संत को कुछ नहीं किया।

शिष्य पेड़ से निचे उतरा और दोनों चल दिए। कुछ दूर गए तो देखा की एक शियार आ रहा है। संत बोले – बेटा आगे चलो शियार काट देगा। शिष्य बोला – आप तो शेर से नहीं डरे, पर शियार से क्यो डर रहे है।

संत बोले – यह संगत का असर है बेटा। शेर आया तब मैं भगवान के साथ था, अब एक डरपोक इंसान के साथ हूँ।

सारांश – कहानी से ये शीख मिलती है हमें कुछ समय ही सही पर भगवान की संगत में रहना चाहिए।

3 . वशिष्ठ जी का सत्संग

रामायण की एक कथा है। जो बहुत ही प्रशिद्ध है। यह कथा विश्वामित्र जी और वशिष्ठ जी की है। विश्वामित्र जी बहुत बड़े तपस्वी थे। तप को बड़ा मानते थे। और वशिष्ठ जी सत्संगी थे, वो सत्संग को बड़ा मानते थे।

एक बार वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी में  बहस छिड़ गयी। फिर दोनों संत। तप बड़ा है या सत्संग ( सत्संग का फल ) इस बात का फैसला करने ब्रम्हा, विष्णु और  महेश जी के पास गए। तीनो भगवान ने उनकी बातें सुनी तो डर गए। उन्होंने श्राप के डर से शेष नाग जी के पास भेज दिया।

शेषनाग जी ने दोनों संत की बात सुनी और बोले! अगर आप में से कोई अपने प्रभाव से धरती को मेरे सर से हटा देगा, तभी मैं निर्णय दे पाउँगा।

विश्वामित्र ने कहा – मैं अपनी तपस्या का आधा फल देता हूँ,  धरती आकाश में स्थिर हो जाये। इतना कहे परन्तु धरती हिली तक नहीं।

तब वशिष्ठ जी ने कहा – अपने सत्संग का मैं, आधी घडी का फल देता हूँ, धरती आपके सर से हठ जाये। तभी धरती शेष जी के फन से अलग होकर निराधार हो गयी। तब विश्वामित्र जी की आँख खुली, और अपनी हार मान ली। 

सारांश – rshindi.com के द्वारा सुनाई गई सत्संग का फल की कहानी से हमे ये शिक्षा मिलती है की हमें हमेशा सत्संग करना चाहिए।

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