अपने मुँह मिया मिट्ठू बनना की कहानी | Apne Muh Miya Mithu Banna Best Story 2023

इस पोस्ट में हम जानेंगे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना ( Apne Muh Miya Mithu Banna ) मुहावरे की कहानी के बारे में। अपनी तारीफ सुनना सबको पसंद है हर कोई चाहता है कि दूसरे लोग उसकी तारीफ करें।

किंतु ऐसा नहीं होता, हर किसी को तारीफ नहीं मिलती। तारीफ सिर्फ उसी इंसान को मिलती है, जो तारीफ के योग्य कार्य किया होता है। कुछ  लोग ऐसे होते हैं कि वह दूसरों से खुद की तारीफ किसी भी कीमत पर सुनना चाहते हैं।

ऐसे लोग दूसरे के सामने अपनी बड़ाई करने के लिए लंबी-लंबी डींग हाकते है। ऐसे लोगों का कोई भी आदर नहीं करता। उनका हर जगह अनादर ही होता है। इसी तरह हर जगह खुद की ही तारीफ खुद से करने वाले लोगों को ही कहा जाता है अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना।

Apne Muh Miya Mithu Banna Kahani

यह बात उस समय की है जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था हर राज्य के राजा अपनी सेनाओं के साथ कौरव या पांडवों के तरफ से युद्ध करने का निर्णय ले रहे थे।

उन्हीं राज्यों में से एक राज्य ऐसा था, जिसे ना तो पांडवों ने आमंत्रित किया था।  और ना ही कौरव ने। उस राज्य का नाम था विदर्भ। जबकि विदर्भ राज्य की सेना बहुत ही ज्यादा बड़ी थी, और बहुत ही शक्तिशाली थी। वहां के राजा भी एक महान योद्धा थे उनका नाम था, रुक्मी।

किंतु वे हमेशा अपने मुंह मियां मिट्ठू होते थे। खुद की ही तारीफ किया करते थे, अक्सर इसलिए उन्हें कोई भी पसंद नहीं करता। जब उनको ना तो कौरवो ने आमंत्रित किया और ना ही पांडवो ने तो वो खुद ही अपनी सेना लेकर पांडवों के शिविर में पहुंच गए।

पांडवों के शिविर में पहुंचने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने उनका बहुत ही अच्छे से स्वागत किया, इसके बाद रुक्मी ने कहा महाराज। आप मेरे अपने हैं इसलिए मैं आपकी सहायता के लिए अपनी सेना लेकर आया हूं। मैं आपकी तरफ से युद्ध करना चाहता हूं।

मुझे पता है कि गुरु द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, भीष्म और अश्वत्थामा जैसे महान योद्धा कौरवों की सेना में शामिल है, आप उनका सामना अकेले नहीं कर पाएंगे, मगर आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है, आप की ओर से युद्ध में लडूंगा।

मैं अकेले ही कौरवो की सेना को हरा दूंगा, तथा आपको विजय दिलाऊंगा। मेरा सामना करने की हिम्मत कौरवो की सेना में नहीं है। आप मेरी वीरता पर भरोसा करिए और निश्चिन्त हो जाइए, क्यों की यह युद्ध मैं आपको हर हाल में जीता के ही रहूंगा।

रुक्मी यह बातें सुनकर पांडवों को बहुत गुस्सा आया, मगर युवराज युधिष्ठिर ने बहुत ही आदर के साथ कहा। हे राजकुमार हमें आपकी वीरता से कोई भी संदेह नहीं। पर हम पांच भाई ही कौरवो से लड़ने के लिए ही काफी है।

इसलिए आप आराम करिए और वापस अपने राज्य की ओर चले जाइये, हमें आपकी आवश्यकता नहीं है। युधिष्ठिर की यह बात सुनकर रुक्मी नाराज हो गए और वहां से सीधा कौरवो के शिविर में चले गए।

कौरवो के शिविर में महाराज दुर्योधन ने भी बहुत उनका आदर पूर्वक सम्मान किया। इसके बाद राजकुमार रुक्मी ने वहां भी दुर्योधन से कहा हे महाराज यहाँ मैं आपकी सहायता के लिए आया हूं। (Apne Muh Miya Mithu Banna)

तुम्हारी सेना में जो गुरु द्रोण, कृपाचार्य, भीष्म इत्यादि योद्धा है, वे सारे वृद्ध हो चुके हैं। वे युद्ध करने में अब इतने माहिर नहीं है, साथी पांडवों की सेना बहुत विशाल है, उनके साथ स्वयं कृष्ण है जो उनकी सहायता कर रहे हैं।

इस युद्ध से आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पांडवों की सेना से मैं अकेले ही लडूंगा, और आपको जीत दिला दूंगा। आप अपनी तरफ से मुझे लड़ने का मौका दीजिए।

राजकुमार रुक्मी की बात सुनकर दुर्योधन को बहुत क्रोध आया, उन्होंने रुक्मी से कहा हे राजकुमार पांडवों की सेना से युद्ध करने के लिए मैं अकेला ही काफी हूं, मुझे आपकी आवश्यकता नहीं है इसलिए आप यहां से जा सकते हैं।

दुर्योधन की बात सुनकर रुक्मी निरास होकर वहां से चला गया। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की अपनी आदत के कारण रुक्मी को दोनों ही जगह से अपमानित होना पड़ा।

इसीलिए कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना, खुद की प्रशंसा करने वालों का यही हश्र होता है। इसलिए अपने मुंह से अपनी बड़ाई कभी नहीं करनी चाहिए।

 

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