Dhobi Ka Kutta Best Story 2023 | धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का

Dhobi Ka Kutta Na Ghar Ka Na Ghat Ka Arth

“धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का ” ( Dhobi Ka Kutta Na Ghar Ka Na Ghat ka ) का अर्थ:  कहा जाता है जो भी व्यक्ति अपने कुछ ऐसे काम के कारण दुसरो का विश्वास खो देता है। फिर कभी लोग उसपे भरोसा नहीं करते, सब उससे दूर हो रहते है, ऐसे लोगो को ही कहा जाता है ” धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का ”

एक बार की बात है पछियो तथा पशुओं में विवाद चालू हो गया, पक्षी जो थे वह आकाश में उड़ा करते थे, वे जमीन तथा पेड़ों पर रहते थे, और वहीं से अपने खाने की व्यवस्था किया करते थे। आकाश में उड़ने के कारण वे अपने आप को पशुओं से सर्वश्रेष्ठ समझते थे।

इधर जितने भी पशु थे वह हमेशा जमीन पर ही रहा करते थे, इस कारण वे जमीन पर अपना हक समझते थे। और वे पक्षियों से नफरत करते थे, की जमीन पे अधिकार सिर्फ पशुवो का ही है।

इसी विवाद के कारण पछियो तथा पशुओं में झगड़ा शुरू हो गया।  पेड़ पर चढ़ने वाले जितने भी पशु थे वह सारे पेड़ पर चढ़कर पछियो के घोसलो को नष्ट कर दिया करते थे, तथा उनके बच्चों को मार दिया करते थे।

वहीं पक्षी भी झुंड बनाकर जानवरों के छोटे-छोटे बच्चों को मार दिया करते थे। इसी प्रकार उन दोनों में बहुत ही भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया था।

चमगादड़ जो कि पेड़ की खोल में रहता था, वह चुपचाप युद्ध को देखा करता था, पशु तथा पक्षियों में जिनकी भी चीज होती, वह उनके साइड हो जाए करता था।

जब पशु जीतते थे तो वह पशुओं की तरफ जाकर बोलता, कि भाई! मैं तो पशु हूं क्योंकि मैं आप सब की तरह बच्चे पैदा करता हूं, अपने बच्चों को दूध पिलाता हूं, क्या कोई पक्षी अपने बच्चों को दूध पिला सकता हैं।

चमगादड़ की बात सुनकर सारे पशु उसका विश्वास कर लेते थे, और उसे कोई भी कष्ट नहीं पहुंचाता था, इसी प्रकार जब पक्षियों की जीत होती तो वह पक्षियों के पास जाता, और कहता भाई! मैं तो पंछी हूं, मैं तुम्हारी तरह उड़ सकता हूं और मैं पेड़ में ही रहता हूं क्या कोई पशु पक्षियों की तरह उड़ सकता है क्या ?

पक्षी भी सोचते हैं यह तो हमारी बिरादरी का है इसलिए चमगादड़ को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था, और चमगादड़ मजे से अपनी जिंदगी काटने लगा।

काफी समय बीत जाने के बाद जब लड़ाई करते करते दोनों को ज्यादा नुकसान होने लगा, तब उन दोनों पक्ष में से जितने भी समझदार लोग थे, वह इस लड़ाई की सुलह करने के लिए आगे आए और धीरे-धीरे दोनों पक्षों में सुलह हो गई।

अब ना तो पक्षी, पशुओं को मारते और ना ही पशु, पक्षियों को मारा करते थे। दोनों प्यार से हंसी खुशी रहने लगे। इसी खुशी का जश्न मनाने के लिए सारे पशु पक्षी जंगल में एक जगह पे इकट्ठा हुए और अपनी खुशियां मनाने लगे।

वहीं पर चमगादड़ भी मौजूद था, तभी उन पक्षियों में से एक पक्षी बोला, यह चमगादड़ भी हमारी बिरादरी का है, इसने  हमको यही बताया है।

इतना सुनते ही पशुओं में से एक पशु ने कहा कि, नहीं नहीं यह पक्षी नहीं है, यह पशु है। उन दोनों में फिर से बहस चालू हो गई कि यह पशु है कि पक्षी।

फिर सारे लोगों ने चमगादड़ से पूछा कि तुम ही बताओ तुम पक्षी हो या पशु। चमगादड़ उनकी बात का जवाब नहीं दे सका। तब सारे पक्षी और पशु उसे धोखा बाज धोखेबाज कहने लगे और उसे मारने के लिए दौड़े।

चमगादड़ जैसे तैसे अपनी अपनी जान बचाकर वहां से भागा और एक पेड़ की खोल में जाकर छुप गया। तब से ना तो पशुओं ने उसे अपना माना। नाही पक्षियों ने उसे अपना माना।

इसलिए कहा जाता है कि धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का (Dhobi Ka Kutta)। तब से  चमगादड़ दिनभर अपने पेड़ की खोल में छुपा रहता है, वह बस रात के समय ही भोजन करने के लिए निकलता।

 

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