Kauwa Chala Hans Ki Chaal Best Story 2023 | कौआ चला हंस की चाल अर्थ और कहानी

कौआ चला हंस की चाल का अर्थ kauwa chala hans ki chaal

( Kauwa Chala Hans Ki Chaal ) इस कहावत का अर्थ यह है कि जब एक कौवा हंस की चाल का नकल करने की कोशिश करता है, तो वह अपनी चाल भी भूल जाता है। इसका मतलब है कि जब कोई व्यक्ति दूसरों की ईर्ष्या करके उनकी नकल करने की कोशिश करता है, तो उसे खुद को हानि होती है।

यह आमतौर पर देखा जाता है कि व्यक्ति अपने से बेहतर लोगों की तुलना में खुद को देखकर उनसे बेहतर दिखने की कोशिश करता है।

यह स्वभाविक हो सकता है, लेकिन इससे उसे ही नुकसान होता है। इसी तरह, जब एक गरीब व्यक्ति एक अमीर व्यक्ति की नकल करने की कोशिश करता है, तो वह मूर्खता कर रहा होता है।

यह उसके लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि उसकी खुद की पहचान और महत्व को छिपाने की कोशिश उसे स्वस्थ और सकारात्मक जीवन से दूर ले जाती है। इसलिए, यह मूर्खता होती है जब व्यक्ति दूसरों की नकल करके खुद को बेहतर दिखाने की कोशिश करता है।

kauwa chala hans ki chaal की कहानी

जब कोई व्यक्ति किसी अपने से ज्यादा समझदार व्यक्ति से घमंड या ईर्ष्या से कम्पटीशन करना चाहता है तो उसे हमेशा हार का ही सामना करना पड़ता है। इसे ही कहते है कौवा चला हंस की चाल। इस मुहावरे पे एक बहुत अच्छी कहानी है।

समुन्द्र के किनारे एक बहुत ही विशाल मंदिर था, जहा दूर दूर से लोग पूजा करने आते थे। उसी मंदिर में एक बहुत बड़ा पेड़ लगा हुआ था, जिसमे एक कौवा रहता था।

मंदिर में आने जाने वालो लोगो द्वारा छोड़े गए खाने पीने की वस्तुओ को वो कौवा खा लिया करता था, मंदिर के कर्मचारी भी उस कौवे को पहचानते थे।

वे लोग भी उसे खाना दे दिया करते थे, बढ़िया खाना मिलने की वजह से वह बहुत तंदरुस्त और मोटा हो गया था। वह अब सब पक्षियों से खुद को बड़ा समझने लगा था।

दूसरे पक्षी भी उससे डर के उसका आदर करते थे। वे सबको हीन भावना से देखता था। उसका कहना था की वो ही इस दुनिया में सबसे बलवान है।( kauwa chala hans ki chaal )

एक दिन उस मंदिर के परिसर में एक हंस कही से उड़ता हुआ आ गया। स्वेत हंस की सुंदरता देख के वह उपस्थित सभी लोग उस हंस की प्रशंशा करने लगे।

उसे देखने के लिए वह लोगो की भीड़ लग गई। ये सब देख के कौवा क्रोधित हो उठा। घमंडी कौवा हंस के पास गया गया और बोला सभी पक्षियों मैं ही सबसे सर्वश्रेठ हूँ। मेरी उड़ने की बराबरी कोई नहीं कर सकता है।

मै 100 प्रकार की गति से उड़ सकता हूँ। तुम्हे मेरे साथ प्रतियोगिता करनी होगी। पर हंस ने कहा मै मानसरोवर में रहता हूँ। और वही जा रहा हूँ। मै केवल एक ही गति से उड़ता हूँ। इसलिए मुझे तुमसे प्रतियोगिता करने में कोई रूचि नहीं है।

पर घमंडी कौवा नहीं माना, दूसरे पक्षी भी कौवे के तरफ से बोलने लगे तब जा के हंस प्रतियोगिता के लिए तैयार हो गया। दोनों ने समुन्द्र के ऊपर उड़ान चालू कर दिया।

कौवा समुन्द्र के ऊपर अनेक प्रकार की गति से कलाबाजियां करता हुआ उड़ रहा था। और वह अपनी रफ़्तार से हंस के आगे लिकल गया। किनारे बैठे बाकि के पछी उसका उत्साह बढ़ा रहे थे।

वही हंस अपनी गति से आराम से ही उड़ रहा था। कौवे में अधिक दूरी तक उड़ने की छमता नहीं होती है। हंस को हारने के चक्कर में कौवा हंस के साथ समुन्द्र के ऊपर काफी दूर तक निकल गया।

थोड़ी ही देर में उसके पंख जवाव देने लगे और वह थकने लगा। अब वह उतरने के लिए जगह देख रहा था, पर चारो तरफ सिर्फ पानी ही पानी था उसके नीचे उतरने के लिए जगह नहीं मिल रही थी।

वह जब नीचे गिरने लगा तो खुद को बचाने के बार बार पानी के ऊपर आता मगर फिर गिर जाता। उसकी हालत देख के हंस उसके पास आया और पूछा, भाई क्या अब तुम पानी के अंदर उड़ के दिखाओगे।

कौवा बोला भाई हंस मुझे माफ़ कर दो मै अपने घमंड के तुमसे प्रतियोगिता करने के भूल कर बैठा जब की मेरे अंदर तुमसे प्रतियोगिता करने की छमता नहीं है। मुझे किसी भी तरह बचा लो।

हंस ने कौवे को अपनी चोंच में पकड़ लिया और वापस उसे समुन्द्र के किनारे पे छोड़ दिया। सभी पछी उसकी ऐसी हालत देख के हसने लगे। सब आपस में बात करने लगे की ठीक हुआ बहुत ढींगे मारता था। खुद को ही महान समझता था अब पता चला की कितना पानी में है।

कौवे को उसके घमंड करने का फल मिल गया इसके बाद उसे समझ आ गया था की वो कितना गलत है। फिर कौवे ने कभी भी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया।

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