आज हम इस पोस्ट में आपको बुढ़िया और उसकी दो बेटियां की कहानी सुनाएंगे। हम अक्सर मंजिल पाने से पहले ही थक जाते हैं, और संघर्ष करते करते खो जाते है।
वैसे किस्मत तो हमेशा हमारे कर्म से ही तय होती है। लेकिन अगर कभी आपका सामना अपने बुरे समय से भी हो जाये तो ऐसा क्या करे की आपका दुर्भाग्य ही आपका सौभाग्य में बदल जाये।
एक बुरे दिन के बाद एक अच्छा समय भी आपके इंतजार में बैठा ही रहेगा। लेकिन अक्सर लोग यह समझ नहीं पाते और हमेशा ही उदासी के अंधकार में डुबे रहते है। जिनका बुरा दिन गुजरता है वह तो किसी की सलाह सुनने की भी राजी नहीं होते हैं।
जो कोई उनको समझाने की कोशिश करता है वो उनपर ही गुस्सा करने लगते हैं। एक ऐसा विचार जो बहुत से अनुभवों को सिखाता है यह एक हमारे जीवन का सन्देश है जो बताता है की इस बुरे समय से आप क्या – क्या सिख सकते है
जैसे की आपको कोई काम दिया जाये और आपसे वो काम न हो सके तो टेंशन में मत आइये की ये काम मेरे से नहीं हुआ , बल्कि उस काम को इतना अच्छे से पूरा करे की सब देख कर खुश हो जाये।
इस दुनिया में अपनी तक़दीर खुद ही लिखनी होगी,
ये कोई चिठ्ठी नहीं हैं जो आप दुसरो से लिखवा लोगे।
कहानी – बुढ़िया और उसकी दो बेटियां
बुढ़िया और उसकी दो बेटियां की यह एक पुरानी कथा हैं। एक गांव में एक बुढ़िया और उसकी दो बेटियां रहती थी। बड़ी का नाम शीला और छोटी का नाम शालू था। उन दोनों बेटियों को बड़े प्यार से पालन – पोषण किया था। जब दोनों बेटियाँ बड़ी हुयी तो उनकी मर्जी से शादी करवा दी।
उन दोनों बेटियों और उनकी माँ को कही कोई तकलीफ नहीं थी। शीला और शालू अपने ससुराल में अच्छे से घुल मिल गयी थी। एक दिन दोनों ने एक बिजनेस शरू किया। बड़ी वाली का छाते का बिजनेस था और छोटी वाली का पापड़ का।
सब कुछ अच्छा चल रहा था। उसकी माँ दोनों बेटियों से बहुत प्यार करती थी। कभी बड़ी वाली के यहाँ रहने चली जाती थी तो कभी छोटी वाली के यहाँ। शीला और शालू भी अपनी से बहुत प्यार करती थी।
एक दिन बहुत तेज धुप निकली थी। उसकी माँ शीला को याद करके रोने लगी। जिसका छाते का दुकान था। क्योकि कुछ दिनों से ठीक से नहीं चल रहा था। उसकी माँ भगवन से बोलने लगी की आप बारिश क्यों नहीं कर रहे हो।
बारिश हो जाएगी तो लोग छाते खरीदना शुरू कर देंगे। मेरी बेटी का जो धंधा हैं धीमा हो गया हैं। ओ अपना परिवार कैसे चलाएगी। इतना बात बुढ़िया ने कहा की चमत्कार हो गया और बारिश शुरू हो गयी।
बुढ़िया खुश हो गयी और उसके चहरे पर मुस्कान आ गयी। फिर उसके चहरे पर अभी मुस्कान आयी ही थी की उदास हो गयी। और वापस आसमान के ऊपर देख कर बने लगी।
हे भगवन ये आपने क्या कर दिया। मेरी दूसरी बेटी का तो पापड़ का बिजनेस है। ओ सुखायेगी नहीं तो बिकेंगे कैसे । मेरी दूसरी बेटी के बारे में तो सोचो। अब ये बुढ़िया का रोजाना का आदत हो गया था।
जिस दिन बारिश हो रही थी उस दिन कह रही थी की धुप क्यू नहीं हो रही है, और जिस दिन धुप हो रही तो कह रही थी की बारिश क्यू नहीं हो रही हैं। अगल – बगल वाले देखते तो बोलते की ये बुढ़ियाँ पागल हो गयी है। दिन भर अपनी बेटियों के रोती रहती है।
एक बार एक साधु वह से निकल रहे थे और ये आसमान को देखकर रो रही थी हमेशा के तरह। साधु ने पूछा की ये रो क्यू रही है, तो लोगो ने कहा की आप इनके चक्कर में मत पड़िये, ये हमेशा रोती रहती है।
साधु ने कुछ सोचा और वही रुक गया। उनको लगा की एक बार जाकर सुनता हूँ की बात क्या है। साधु ने उसके सामने गया और बोला अम्मा आपको क्यो परेशान हैं। तो अम्मा बोली – मेरी दो बेटी है।
शीला और सालु। एक का छाते की दुकान है और दूसरी का पापड़ का। जिसका छाते का दुकान है उसका धंधा मंदा पड़ गया था, तो मैं भगवान से प्रार्थना की तो बारिश होने लगी। फिर मुझे दूसरी बेटी की याद आयी।
जिसका पापड़ का बिजनेस था। अब ओ गीले हो जायेंगे। धुप नहीं निकलेंगे तो सूखेंगे कैसे। साधु ने उसकी बात बहुत ध्यान से सुने और कहा बहुत आसान तरीका है।
जिस दिन बारिश होने लगे उस दिन उस बेटी के बारे में सोचिये जिसका छाते का बिजनेस है और ये सोच कर खुश रहिये की उसके पास में पैसा आ रहा है। उस दिन अपनी दूसरी बेटी के बारे में मत सोचिये।
जिस दिन धुप निकले उस दिन अपनी उस बेटी के बारे में सोचिए जिसका पापड़ का बिजनेस है। उस दिन उस वाली बेटी के बारे में मत सोचिये जिसका छाते का बिजनेस हैं।
अम्मा को साधु की सारी बातें समझ में आ गयी , और उसके कही हुयी बातों पर चलने लगी , और खुश रहने लगी।
सारांश: इस बुढ़िया और उसकी दो बेटियां की कहानी से हमें यही सीख मिलती है की बुरे समय में इंसान की हिम्मत टूट जाती है जब भी आपके जीवन में ऐसा समय आये तो बहुत ही शांत रहे और अपने आप को संभाल कर रखे। बुढ़िया और उसकी दो बेटियां की कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताये।
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