लोभ – नर्क का द्वार ( Lobh Narak Ka Dwar ) – Best Moral Story In Hindi 2023

लोभ – नर्क का द्वार ( Lobh Narak Ka Dwar ) 

यह कहानी है लोभ – नर्क का द्वार ( Lobh Narak Ka Dwar )  की। बहुत समय पहले की बात हैं। एक गांव में एक मनोज नाम का एक गरीब किसान रहता था। वो इतना गरीब था की दो वक्त का खाना भी मिलना मुश्किल था।

जैसे तैसे करके अपने परिवार का गुजारा करता था। कभी कभी किसी के घर से कुछ चावल मांग कर लाता था तो एक दिन का खाने का हो जाता था। ऐसे ही उसकी  जिंदगी चलती थी।

मनोज एक बार रात में जब सोने गया गया तो वह अपने बिस्तर में लेटने के बाद सोचने लगा की ऐसे ही चलता रहा तो मेरा परिवार एक दिन भूखा मर जायेगा। ऐसा ना हो इसलिए मुझे कुछ न कुछ उपाय ढूंढना पड़ेगा।

उसके दूसरे दिन मनोज सुबह सुबह अपने घर से काम ढूंढने निकल गया। भूखे प्यासे रहकर, दिन भर उसने काम ढूंढा, पर उसे कही भी काम नहीं मिला। शाम को थका हरा उदास होकर घर लौट आया और रात में थोड़ा बहुत खाना कर सो गया।

वो हिम्मत नहीं हरा और फिर दूसरे दिन काम की तलाश में निकल गया। उस दिन भी बहुत कोशिश करने के बाद भी उसे एक भी काम नहीं मिला। और फिर मनोज उदास होकर अपने घर जाने लगा। वो दूसरे गांव से होकर जा रहा था। तो उसने देखा की उस गांव में एक बहुत बड़ी लाइन में लोग खड़े हुए थे।

मनोज वहाँ पंहुचा तो देखा की एक जमीनदार, गरीब और असहाय लोगों की मदद कर रहा था। किसी को घर की जरुरत थी तो घर दे रहा था, किसी को जमीन की जरुरत थी तो जमीन, और किसी को अनाज की जरुरत थी तो अनाज दे रहा था।

ये सब देखकर उसके मन में लोभ आ गया और सोचा की अगर मैं भी इस लाइन में खड़ा हो जाऊ तो मुझे भी कुछ न कुछ मिल ही जायेगा

और वह लाइन में लग गया।धीरे धीरे उसकी बारी आयी। जमींदार उससे पूछा अब तुम बताओ तुम्हे क्या चाहिए ? मनोज हाथ जोड़ कर बोला की साहब मुझे आप कुछ जमीन दे देंगे तो बड़ी मेहरबानी होंगी।

जमींदार बोला – ठीक हैं तुम एक काम करो। कल सुबह से चलना शुरू करो और सूरज डूबने से पहले तुम उसी स्थान पर वापस आ जाओ जहाँ से चलना शुरू किये थे। उस घेरे में जितना भी जमीन आएगा वो सब तुम्हारा हो जायेगा।

जमींदार की बात सुनकर मनोज बहुत ख़ुश हो गया। और दूसरे दिन एक स्थान पर निशान गाड़ा और वहाँ से चलना शुरू कर दिया। उसने चलते चलते सोचा की बड़ा लम्बा घेरा लूंगा और बहुत अधिक जमीन मिलेगी।

फिर वह कुछ देर बाद बिना खाये पिए दौड़ने लगा। और रास्ते में कही भी नहीं रुका। और बिना पीछे देखे आगे बढ़ता जा रहा था। फिर कुछ देर में शाम होने लगी। और सूरज भगवान थोड़ा थोड़ा डूबने लगे। तब मनोज घबराने लगा और बोला- अरे मैं तो बहुत दूर चला आया हूँ।

अब सूरज डूबने से पहले उस स्थान पर कैसे पहुँचूँगा, जहाँ से चलना शुरू किया था। और वहाँ तक नहीं पंहुचा तो घेरा अधूरा रह जायेगा और मुझे कुछ भी नहीं मिलेगा। अब मैं क्या करू, इधर का रास्ता भी अच्छे से नहीं जानता हूँ।

फिर वह भूखा प्यासा होते हुए भी जैसे तैसे कर के दौड़ना लगा। कुछ दूर गया ही था की उसे हाफ आने लगी और उसके पैर लड़खड़ाने लगे। उधर सूरज भगवान डूब रहे थे और इधर इसका हालत ख़राब हो रहा थी। कुछ देर बाद सूर्यास्त हो गया और वह बेहोस होकर जमीन पर गिर गया और थोड़ी ही देर में उसकी मृत्यु हो गयी

जब उसकी मृत्यु का पता उसके परिवार वालो और गांव वालो को चला, तब वे वहाँ आ पहुचे, और उसे वहाँ से उठाकर शमशान में ले गए। उसके हिस्से में सिर्फ चार हाथ जगह मिला और उसे उसी जगह पर दफना दिया गया।

सारांश – हमें इस Lobh Narak Ka Dwar की कहानी से यही सिख मिलती हैं की हमें कभी भी लालच नहीं करनी चाहिए। जितना हमें मिला हैं उसी में खुश रहना चाहिए। और मेहनत करना चाहिए। जो प्राप्त हैं वही पर्याप्त हैं। जिसका मन मस्त हैं, उसके पास समस्त हैं। लोभ – नर्क का द्वार ( Lobh Narak Ka Dwar ) की कहानी आपलोगो को कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताये। 


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