कहानी – मुर्ख को ज्ञान मत देना (Murkh Ko Gyan Mat Dena)।
मुर्ख को ज्ञान मत (Murkh Ko Gyan Mat Dena) देना एक समय की बात है। एक रामपुर नाम का एक गांव था। वह एक नदी के किनारे बसा हुआ था और उसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा और घना जंगल था।
उस जंगल मे बहुत सारे जीव-जनतू और पशु-पक्षी रहते थे।वे सब दिनभर मेहनत करके एक एक तिनका जुटा कर अपना सुन्दर घोंसला बनाकर रहते थे। और उन्हें किसी भी मौसम से कोई डर नहीं था और बहुत मजे से रहते थे। किसी से कोई दुश्मनी नहीं था।
उस जंगल एक बहुत घना पीपल का पेड़ था। और उस पेड़ पर एक कबूतर का जोड़ा अपना एक सुन्दर सा घोंसला बनाकर रहते थे। सर्दी का मौसम था और बहुत तेज से ठंडी ठंडी हवा भी चल रही थी। दोनों अपने घोसले मे आराम से रह रहे थे। उन्हें किसी भी तरह की कोई तकलीफ नहीं थी
एक बार हवा के साथ साथ बारिश भी होने लगी। और ठंडी भी बहुत पड़ने लगी , मतलब इस ठंड को सहना मुश्किल हो रहा था। और उस पेड़ पर रह रहे सारे पक्षी बारिश के मजे ले रहे थे।
तभी कही से ठंडी के मारे कापता हुआ एक बंदर आया और उस पेड़ के डाली पर बैठ गया। बारिश की वजह से उसका पूरा शरीर भीग गया था और दांत भी बहुत बज रही थी। ठंडी से बुरा हाल हो गया था।
उस पेड़ पर बैठे ये सब नजारा एक कबूतर का जोड़ा देख रहे थे। और नर कबूतर को बंदर पर दया आ गयी और बोली – भाई इतनी ठंडी पड़ रही है की सहना मुश्किल हो रहा है आप तो बहुत जवान और इंसानों जैसे लग रहे हो, अपने लिए एक अच्छा सा घर क्यो नहीं बना लेते अगर आज आपका एक घर होता तो इस बारिश मे इस डाली से उस डाली पर नहीं करना पड़ता।
अब मुझे ही देख लो मै इतनी छोटी सी पक्षी हूँ फिर भी एक एक तिनका जुटाकर एक सुन्दर सा अपना घोंसला बनाकर रह रही हूँ और मुझे कोई ठंडी या बारिश से डर नहीं है और तुम इतने बड़े होकर इतना भी नहीं कर सकते।
बंदर ने कबूतर के बात को सुनकर बहुत गुस्सा हो गया और बोला – अरे दुष्ट बंद कर अपनी बकवास, मै यहाँ ठंडी से मरा जा रहा हूँ और तू मेरी मदद करने ने बजाए बक बक कर रही है, ज्यादा ज्ञान देगी तो यही पर तुझे मै कुचल दूंगा।
इतनी छोटी सी पक्षी होकर मुझ जैसे बलवान और बुद्धिमान बंदर को आयी ज्ञान देने। कबूतर ने कहा – ऐसा बुद्धिमान होने से क्या मतलब की तुम्हारे पास एक रहने के लिए घर ही नहीं है।
अगर तुम्हारे पास एक घर होता तो आज तुम अपनेघर मे रहकर हमलोग जैसे बारिस के आनंद लेते रहते और ऐसे सर्दी से कापते भी नहीं। बंदर ने जब कबूतर की इतनी बात सुना तो वह और ज्यादा गुस्सा हो गया और बोला – अरे ओ एक दुष्ट पक्षी अब तू अपने औकात से ज्यादा बोल रही है तुझे पता भी है मै कौन हूँ?
मै इस जंगल मे रहने वाले सारे बंदरों का मालिक हूँ। ये सब मुझे बलवान और बुद्धिमान समझकर मुझे अपना महाराज बनाया है, और तू मुझसे ऐसी बाते कर रही है।अब तू अपना मुँह बंद कर नहीं ती अभी तुझे कुचल दूंगा।
मेरे पर इतना गुस्सा क्यो कर रहो हो। मै तो तुम्हारे अच्छे के लिए ही कह रही हूँ। आज इस बारिश मे तुम्हारे और भी साथी कही न कही इस सर्दी से काप रहे होंगे। अब इस ठंडी के कष्ट से तो तुम्हे समझ आ ही गया होगा, और तुम बंदरों का महाराज हो इसलिए तुम्हे अपने लिए और सभी साथी के लिए भी घर बना के देना चाहिए।
बंदर ने गुस्से से दांत को पीसते हुआ बोला – अब तू बहुत बक बक कर रही है तुझे अभी मेरे बारे मे पता नहीं है, आज तक सबको मै डराता आया हूँ और तू इतनी से होकर मुझे ज्ञान दे रही है। तुझे अपने इस घास फुस के घोसले पर बहुत घमंड है न रुक मै तुझे अभी बताता हूँ।
और फिर बंदर उछल कर दूसरे डाली पर गया और कबूतर के घोसले को एक ही झटके मे तोड़ फोड़ कर निचे गिरा दिया। कबूतर के जोड़े ने बड़ी कठिनाई से अपना जान बचाया और दूसरे डाली पर उड़कर बैठ गए।
वे बहुत दुखी हुए और बोले इस दुष्ट बंदर को ज्ञान देकर बहुत बड़ी गलती हो गयी तभी उसी पेड़ के डाली पर बैठे दूसरे पक्षी ने कहा – भाई किसी इंसान की कहावत है – मुर्ख लोग को 2 रूपये दे दो लेकिन उसे कभी ज्ञान मत दो। इस संसार मे तुम अच्छे हो वो ठीक है लेकिन दूसरे को भी अच्छा समझ रहे हो, ये एक मूर्खता है।
सारांश – ” मुर्ख को ज्ञान मत देना (Murkh Ko Gyan Mat Dena)” इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है की जो शिक्षा लेने योग्य है उसे ही शिक्षा देनी चाहिए अगर तुम दुष्ट और अहंकारियों को शिक्षा देने की कोशिश कर रहे इसमें तुम्हारा ही सर्वनाश होगा।
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